Surdas ke Dohe with Meaning In Hindi | सूरदासजी के दोहे हिंदी अर्थ सहित | Best Surdas Ke Dohe

Surdas ke Dohe with Meaning In Hindi | सूरदासजी के दोहे हिंदी अर्थ सहित | Best Surdas Ke Dohe

सूरदास के दोहे : Surdas Ke Dohe in Hindi 

दोहा – “चरण कमल बंदो  हरी राइ ।
जाकी कृपा पंगु गिरी लांघें अँधे को सब कुछ दरसाई।।
बहिरो सुनै मूक पुनि बोले रंक चले सर छत्र धराई।
सूरदास स्वामी करुणामय बार- बार बंदौ तेहि पाई ।।”

अर्थ : सूरदास के अनुसार श्री कृष्ण की कृपा होने पर लंगड़ा व्यक्ति भी पर्वत को लाँघ लेता है । अंधे को सब कुछ दिखाई देने लता है। बहरे  व्यक्ति  सुनने लगता है। गूंगा व्यक्ति बोलने लगता है और गरीब व्यक्ति अमीर हो जाता है। ऐसे दयालु श्री कृष्ण के चरणों की वंदना कौन नहीं करेगा ।

Surdas ke Best Dohe in Hindi

दोहा –“मैया मोहि मैं नही माखन खायौ ।
भोर भयो गैयन के पाछे ,मधुबन मोहि पठायो ।
चार पहर बंसीबट भटक्यो , साँझ परे घर आयो ।।
मैं बालक बहियन को छोटो ,छीको किहि बिधि पायो ।
ग्वाल बाल सब बैर पड़े है ,बरबस मुख लपटायो ।।
तू जननी मन की अति भोरी इनके कहें पतिआयो ।
जिय तेरे कछु भेद उपजि है ,जानि परायो जायो ।।
यह लै अपनी लकुटी कमरिया ,बहुतहिं नाच नचायों।
सूरदास तब बिहँसि जसोदा लै उर कंठ लगायो ।।”

अर्थ : बहुत ही प्रसिद्ध पद है ,श्री कृष्ण की  बाल लीला का वर्णन अत्यंत सहज भाव से सूरदास जी  करते है :
कन्हैया कहते है कि मैया मैंने माखन नही खाया  है ।सुबह होते ही गायों के पीछे मुझे भेज देती हो । चार पहर भटकने के बाद साँझ होने पर वापस आता हूँ ।
मैं छोटा बालक हूँ । मेरी बाहें छोटी है , मैं छीके तक कैसे पहुँच सकता हूँ ? मेरे सभी दोस्त मेरे से बैर रखते है । इन्होंने मक्खन जबरदस्ती मेरे मुख में लिपटा दिया है । मां तू मन की बहुत ही भोली है । इनकी बातो में आ गईं है । तेरे दिल मे जरूर कोई भेद है ,जो मुझे पराया समझ कर मुझ पर संदेह कर रही हो । ये ले अपनी लाठी और कम्बल ले ले । तूने मुझे बहुत परेशान किया है । श्री कृष्ण ने बातों से अपनी मां का मन मोह लिया । मां यशोदा ने मुस्कराकर कन्हैया को अपने गले से लगा लिया ।

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दोहा – मुखहिं बजावत बेनु धनि यह बृन्दावन की रेनु।

नंदकिसोर चरावत गैयां मुखहिं बजावत बेनु।।

 मनमोहन को ध्यान धरै जिय अति सुख पावत चैन।

चलत कहां मन बस पुरातन जहां कछु लेन न देनु।।

इहां रहहु जहं जूठन पावहु ब्रज बासिनी के ऐनु।

सूरदास ह्यां की सरवरि नहिं कल्पब्रूच्छ सुरधेनु।।”

अर्थ –  इस पद में सूरदास कहते हैं कि ब्रजरज धन्य है जहां नंदपुत्र श्रीकृष्ण गायों को चराते हैं और अंधरों पर रखकर बांसुरी बजाते हैं। उसी भूमि पर श्यामसुंदर का स्मरण करने से मन को परम शांति मिलती हैं।

सूरदास मन को प्रभोधित करते हुए कहते हैं की अरे मन! तू काहे इधर उधर भटकता है। ब्रज में ही रह, जहां व्यावहारिकता से परे रहकर सुख की प्राप्ति होती हैं। यहां न किसी से लेना, न किसी को देना। सब ध्यानमग्न हो रहे हैं।

ब्रज में रहते हुए ब्रजवासियों के जूठे बरतनों से जो कुछ प्राप्त हो उसी को ग्रहण करने से ब्रह्ममत्व की प्राप्ति होती हैं। सूरदास कहते हैं की ब्रजभूमि की समानता कामधेनु भी नहीं कर सकती। इस पद में सूरदास ने ब्रज भूमि का महत्व प्रतिपादित किया हैं।

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Surdas Ke Dohe in Hindi 

दोहा – ” बुझत स्याम कौन तू गोरी। कहां रहति काकी है बेटी देखी नही कहूं ब्रज खोरी ।।
काहे को हम ब्रजतन आवति खेलति रहहि आपनी पौरी ।
सुनत रहति स्त्रवननि नंद ढोटा करत फिरत माखन दधि चोरी ।।
तुम्हरो कहा चोरी हम लैहैं खेलन चलौ संग मिलि
जोरी ।
सूरदास प्रभु रसिक सिरोमनि बातनि भूरइ राधिका भोरी ।।”

अर्थ : यह पद राग तोड़ी से बद्ध है । इसमें राधा के प्रथम मिलन के बारे में वर्णन किया गया है ।
श्रीकृष्ण ने राधा से पूछा , हे ! गौरी तुम कौन हो ? कहां रहती हो ? किसकी पुत्री हो ? हमने पहले कभी तुम्हे इन गलियों में नही देखा ।

तुम हमारे इस ब्रज में क्यो चली आयी ? अपने ही घर के आंगन में खेलती रहती । इतना सुनकर राधा बोली ,मैं सुना करती थी कि नंद का लड़का माखन चोरी करता फिरता है ।कृष्ण बोले कि हम तुम्हारा क्या चुरा लेंगे ? अच्छा हम मिलजुलकर खेलते है । इस प्रकार सूरदास जी कहते है कि रसिक कृष्ण ने बातो ही बातो में भोली भाली राधा को भरमा दिया ।


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उम्मीद है कि आपको यह सभी दोहे पसंद आये होंगे। समय समय पर हम और दोहे ऐड करते रहेंगे 

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