Top 25+ Kabir Ke Dohe In Hindi

Kabir Das Ke Dohe In Hindi~ संत कबीर के प्रसिद्द दोहे और उनके अर्थ

कबीर  का अरबी भाषा में अर्थ होता है महान.लगभग 600 साल पहले कबीर दास (Kabir Das)जी का जन्म 1398 ad में भारत में हुआ था. ऐसा माना जाता है कि कबीर दास जी 120 साल जीवित रहे। उसी समय भारत में भक्ति आंदोलन का एक नया दौर चला था। जिसमे कबीर दास जी (Kabir Das Ke dohe) का एक बहुत बड़ा योगदान रहा है।

कबीर दास जी के दोहे  आसान होने के साथ अपने आप में एक गहराई लिए हुए होते हैं जो हमें बहुत कुछ सिखा जाते हैं। इतने पुराने समय में लिखे होने के बाद भी यह आज भी हमारे जीवन में सटीक बैठते हैं। इनमे से कुछ दोहे हम यहाँ नीचे लिस्ट डाउन कर रहे हैं : यह सभी दोहे बहुत ही मोटिवेशनल और मीनिंगफुल हैं –

माटी कहे कुम्हार को तू क्या रौंदै मोय,

एक दिन ऐसा आएगा, मई रौंदूगी तोय।

 

कबीरा तेरी झोपडी, गल कटिया के पास,

जैसी करणी वैसी भरणी, तू क्यों भय उदास।

 

 

चलती चक्की देख के , दिया कबीरा रोये ,

दो पाटन के बीच में, बाकी बचा न कोय के ।

Sant Kabir ke dohe

 

कबीरा गर्व ना कीजिये, कबहुँ ना हँसिये कोय,

अज ये नाव समुद्र में ना जाने क्या होये ।

Sant Kabir ke dohe

 

माँगन मरण समान है , मत कोई माँगो भीख,

माँगन से मरणा भला, यह सतगुरु की सीख ।

Sant Kabir ke dohe

 

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब,

पल में प्रलय होयगी , बहुरि करोगे कब ।

Sant Kabir ke dohe

 

ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोय ,

आपणा तन शीतल करे , औरन को सुख होय ।

Sant Kabir ke dohe

 

माया मरी न मन मरा, मरमर गए शरीर ,

आशा तृष्णा न मरी , कह गए दास कबीर ।

Sant Kabir ke dohe

 

जब तू आया जगत में , लोग हँसे तू रोय,

ऐसी करनी ना करो , पाछे हँसे सब कोय ।

Sant Kabir ke dohe

 

बुरा जो देखन मैं चला , बुरा ना मिलया कोय,

जो मन देखा आपणा , तो मुझसे बुरा ना कोय ।

Kabir Das ke dohe

 

पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ , पंडित भयो ना कोय ,

ढाई आखर प्रेम के , जो पढ़े सो पंडित होय ।

Kabir Das ke dohe

 

दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे ना कोय ,

जो सुख में सुमिरन करे , तो दुःख काहें को होय ।

Kabir Das ke dohe

 

माँगन मरण समान है , मत कोई माँगो भीख,

माँगन से मरणा भला, यह सतगुरु की सीख ।

Kabir Das ke dohe

 

कबीरा ते नर अंध है , जो गुरु कहते और ,

हरी रूठे गुरु ठौर है , गुरु रूठे नहीं ठौर ।

Kabir Das ke dohe

 

 

पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ , पंडित भयो ना कोय ,

ढाई आखर प्रेम के , जो पढ़े सो पंडित होय ।

Kabir Das ke dohe

 

चलती चक्की देख के , दिया कबीरा रोये ,

दो पाटन के बीच में, बाकी बचा न कोय के ।

Kabir Das ke dohe

 

कबीरा गर्व ना कीजिये , कबहुँ  ना हँसिये कोय ,

अज ये नाव समुद्र में , ना जाने क्या होय ।

Kabir Das ke dohe

 

माँगन मरण समान है , मत कोई माँगो भीख,

माँगन से मरणा भला, यह सतगुरु की सीख ।

Kabir Das ke dohe

 

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब,

पल में प्रलय होयगी , बहुरि करोगे कब ।

Kabir Das ke dohe

 

ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोय ,

आपणा तन शीतल करे , औरन को सुख होय ।

Kabir Das ke dohe

 

पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ , पंडित भयो ना कोय ,

ढाई आखर प्रेम के , जो पढ़े सो पंडित होय ।

Kabir Das ke dohe

 

बुरा जो देखन मैं चला , बुरा ना मिलया कोय,

जो मन देखा आपणा , तो मुझसे बुरा ना कोय ।

Kabir Das ke dohe

 

जब तू आया जगत में , लोग हँसे तू रोय,

ऐसी करनी ना करो , पाछे हँसे सब कोय ।

Kabir Das ke dohe

 

माया मरी न मन मरा, मरमर गए शरीर ,

आशा तृष्णा न मरी , कह गए दास कबीर ।

Kabir Das ke dohe

 

कबीरा तेरी झोपडी, गल कटिया के पास,

जैसी करणी वैसी भरणी, तू क्यों भय उदास।

Kabir Das ke dohe

 

कबीरा ते नर अंध है , जो गुरु कहते और ,

हरी रूठे गुरु ठौर है , गुरु रूठे नहीं ठौर ।

Kabir Das ke dohe

 

पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ , पंडित भयो ना कोय ,

ढाई आखर प्रेम के , जो पढ़े सो पंडित होय ।

Kabir Das ke dohe

 

माँगन मरण समान है , मत कोई माँगो भीख,

माँगन से मरणा भला, यह सतगुरु की सीख ।

Kabir Das ke dohe

 

 

उम्मीद है कि आपको यह सभी दोहे  पसंद आये होंगे। समय समय पर हम और दोहे ऐड करते रहेंगे और इनके मीनिंग भी ऐड करेंगे।

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