Importance of Ganesh Visarjan and Anant Chaturdashi in Hindi

गणेश विसर्जन (Ganesh Visarjan ) और अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) का महत्व

Ganesh Visarjan|गणेश विसर्जन

गणेश चतुर्थी त्यौहार के आखिरी दिन गणेश विसर्जन (Ganesh Visarjan) मनाया जाता है।यह भाद्रपदा महीने के शुक्ल पक्ष के चौदहवें दिन पड़ता है। इसे अनंत चतुर्दशी(Anant Chaturdashi) भी कहते है। जैसा की विसर्जन शब्द से ही समझ आता है इस दिन गणपति बाप्पा की मूर्ति को किसी नदी, समुद्र या बड़े पानी वाले श्रोत में विसर्जित किया जाता है। जिस मूर्ति को हम गणेश चतुर्थी के पहले दिन घर में स्थापित करते हैं उसे आखिरी दिन विसर्जित कर देते हैं।

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गणेश विसर्जन की मान्यता | Story behind Ganesh Visarjan

Ganesh Visarjan (गणेश विसर्जन) की मान्यता कुछ इस प्रकार है – गणेश चतुर्थी पूजा के आखिरी दिन भगवान गणेश को विसर्जित करते हैं ताकि वह अपने घर मतलब कैलाश पर्वत अपने पिता शिव जी और माता पार्वती के पास लौट जाएँ। ऐसा माना जाता है की भगवान गणेश अपने साथ हमारे घर के जितने भी कष्ट और समस्याएं थी वो सब ले जाते हैं और घर में सुख समृद्धि का आगमन होता है।
गणेश चतुर्थी मानव के जन्म से मृत्यु तक का चक्र दर्शाता है। पहले दिन भगवान गणेश के जन्म या घर में आगमन को गणेश स्थापना और आखिरी दिन इनका विसर्जन या विदाई के रूप में मनाया जाता है । हर साल लोग बहुत ही हर्ष उल्लास से इस पर्व को मनाते हैं और प्रार्थना करते हैं की फिर से यह पर्व जल्दी ही आये।

“गणपति बप्पा अगले बरस तुम जल्दी आना …जल्दी आना”

अनंत चतुर्दशी(Anant Chaturdashi): भगवान विष्णु के अनंत अवतार की आराधना

अनंत मतलब वह जो सनातन या अविनाशी हैं। इस दिन विष्णु जी की पूजा आराधना की जाती है। इसके पीछे कौण्डिल्य और सुशीला की कहानी प्रचलित है जो इस प्रकार है :
सुशीला एक सुमंत नाम के ब्राह्मण की बेटी थी। सुशीला की माँ दीक्षा की असमय मृत्यु के बाद सुमंत ने कर्कश से शादी कर ली। सुशीला की सौतेली माँ उसे बहुत कष्ट देती थी। इसके चलते सुशीला ने कौण्डिल्य से विवाह किया और दोनों वहां से दूर भाग गए।
एक बार सुशीला ने नदी में नहाते वक़्त कुछ औरतों को पूजा पाठ करते हुए देखा। पूछने पर उन्होंने बताया की वह भगवान अनंत का सुमिरन कर रही हैं जिसे करने से घर में सुख समृद्धि आती है।

पूजा की विधि:

पूजा की पूरी विधि समझाते हुए उन्होंने सुशीला को बताया की भगवान विष्णु के साथ साथ  शेषनाग की पूजा तेल और फूलों के साथ करना होता है और इस दिन घर में घरगा और अनारसी जैसी चीज़ें बनाकर ब्रह्मिनो को खाना खिलाया जाता है। एक धागे या कलावे में चौदह गांठे लगाकर इसे कुमकुम में भिगोकर भगवान विष्णु को चढ़ाया जाता है। इस धागे या डोरी को अनंत बोला जाता है । और इसे अपने हाथ में में बांधकर चौदह दिन का उपवास रखा जाता है। व्रत में एक सेर आते की मालपुआ या पूरी बनाकर उसमे से आधा ब्राह्मणों को दान देना चाहिए और बाकि अपने बंधू बांधवों को बाँट देना चाहिए। इस व्रत में नमक का उपयोग मना होता है। इससे अच्छे फल मिलते हैं।

सुशीला ने भी इस उपवास को किया और सुख शांति समृद्धि प्राप्त की। सुशीला के पति कौण्डिल्य ने इस बात को ना मानते हुए ये कहा कि यह सब उसके कठिन परिश्रम का फल है। और गुस्से में सुशीला के हाथ में बंधा कलावा निकालकर आग में जला दिया। ऐसा करने पर भगवान अनंत निराश हुए और सुशीला और कौण्डिल्य के जीवन में दुःख और निराशा आने लगी। जिसके बाद कौटिल्य को पूरी बात समझ आयी और वह भगवान अनंत के खोज में निकल पड़े। ताकि उनसे माफ़ी माँग सके। बहुत दिनों के खोज के बाद भगवान विष्णु के दर्शन हुए।

माफ़ी मांगने पर विष्णु जी ने कौण्डिल्य को चौदह दिन का उपवास रखने को कहा जिसके बाद उसके सारे दुःख दूर हो जायेंगे।तभी से यह व्रत हिन्दू और जैन धर्म के लोग करते आये हैं। चौदह दिन के उपवास में नमक नहीं खाया जाता। रोज़ सुबह उठकर नहा धोकर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। औरते अपनी बायीं और आदमी अपनी दायी कलाई में कुमकुम से रंगे चौदह गांठों वाला कलावा बांधते हैं।
आखिरी दिन उपवास ख़त्म होता है और इसी दिन को अनंत चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है।

जैन धर्म में अनंत चतुर्दशी की मान्यता

जैन पंजांग में इस दिन का बहुत महत्व है। जैन धर्म मानने वाले लोग भादो महीने के आखिरी दस दिन में उपवास रखते हैं। अनंत चतुर्दशी आखिरी दिन मनाया जाता है। इस दिन के अगले दिन जैन लोग अपने जाने अनजाने में किये गए गलतियों के लिए भगवान से माफ़ी मांगते हैं जिसे क्षमावनी भी बोला जाता है। इस दिन भगवान वासुपूज्य को निरवाना मिला था।

अनंत चतुर्दशी व्रत विधि

व्रत करने वाले को सुबह जल्दी उठकर नाहा धोकर व्रत का संकल्प करना होता है। शास्त्रों में यह व्रत का संकल्प किसी पवित्र नदी या सरोवर के तट पर करने का विधान है। पर क्यूंकि आज के समय ये यह संभव नहीं तो हम इसे घर में ही पूजा घर में साफ़ जगह पर एक कलश को स्थापित करके कर सकते हैं। कलश पर शैय्या पर लेते हुए विष्णु जी की मूर्ति या फोटो को रखें। इसके बाद एक धागा लें और उसमे 14 गांठे लगाकर अनंत तैयार करके इसे भगवान के पास रखे।
इसके बाद भगवान विष्णु और शेषनाग जी की पूजा करें। “ॐ अनन्तायनमः” मंत्र का जाप करें। पूजा के बाद अनंत सूत्र को स्त्री अपने बाएं और पुरुष अपने दाएं हाथ में बांध लें। अनंत सूत्र को बांधते वक़्त इस मात्रा का उच्चार करना चाहिए:
“अनंत संसार महासमुद्रे मगनं संभ्यूध्वर वासुदे। अनन्तरुपे विनियोजयस्व अहंतसुत्राये नमो नमस्ते।”
इसके बाद ब्राह्मणो को भोजन कराएं और स्वयं भी सपरिवार प्रसाद ग्रहण करें। इसके बाद व्रत कथा सुनी जाती है।

 

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