What is Market Cap in Hindi
अगर आप शेयर बाजार में नए हैं तो बहुत सी बार आपने market capitalization का नाम जरूर सुना होगा। इसको आमतौर पर मार्केट कैप के नाम से जाना जाता है। यह एक बहुत ही इंपॉर्टेंट डाटा है जिसको हर इन्वेस्टर्स किसी भी कंपनी में इन्वेस्टमेंट करने या ट्रेडिंग करने से पहले देखता है और उसके बाद ही निवेश का डिसीजन लेता है। आज हम आपको बताएंगे कि मार्केट कैप क्या है(What is Market Cap in Hindi ) और इसकी गणना कैसे की जाती है और यह इतना अधिक इंपॉर्टेंट क्यों होता है?
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मार्केट कैप क्या है? What is Market Cap in Hindi
दोस्तों मार्केट कैप का मतलब टोटल मार्केट वैल्यू से है। और इसको कंपनी द्वारा जारी किए गए टोटल आउटस्टैंडिंग शेयर की संख्या जो मौजूदा समय में चल रही है यानी कि actual share price से मल्टीपल करके निकालते हैं। इस प्रकार इस से किसी भी कंपनी के साइज के बारे में पता चलता है, जिसकी हेल्प से इन्वेस्टर future potential का आईडिया लगा कर, रिस्क एंड रीवार्ड को ध्यान में रखते हुए निवेश करते हैं।
मिसाल के तौर पर मान लीजिए कि अगर मौजूदा समय में रिलायंस के 1 शेयर का मूल्य 200 रुपए है। और रिलायंस ने 10,000 टोटल शेयर्स जारी किए हैं। तो फिर ऐसे में रिलायंस का टोटल मार्केट कैप इस तरह से होगा = 200×10,000 = 20 लाख रुपए।
मार्केट कैप की गणना कैसे की जाती है?
आइए अब आपको बताते हैं कि मार्केट कैप की गणना कैसे होती है। इसके लिए बहुत सिंपल और सीधा सा फार्मूला है (Market Capitalization=Current share price × Total outstanding shares)
हिंदी में इसको इस तरह से समझिए –
(बाजार पूंजीकरण= वर्तमान शेयर मूल्य× कंपनी द्वारा जारी कुल शेयर्स)
करंट शेयर प्राइस (Current share price) – अब आपको बताते हैं कि करंट शेयर प्राइस क्या होता है? तो दोस्तों, ओपन मार्केट (सुबह 9:15 बजे से शाम 3:30 बजे) के दौरान जब किसी भी कंपनी की जो running price चल रही होती है उसी को ही करंट शेयर प्राइस कहते हैं। साथ ही यह भी जान लीजिए कि यह प्राइस डिमांड, सप्लाई, कंपनी ग्रोथ, फाइनेंशियल डाटा और दूसरे कई फैक्ट्स के बेस पर लगातार बदलती रहती है।
आउटस्टैंडिंग शेयर्स (Outstanding shares) – अब आपको बताते हैं कि आउटस्टैंडिंग शेयर्स क्या होते हैं? दोस्तों आउटस्टैंडिंग शेयर्स का मतलब कंपनी के द्वारा जारी किए गए टोटल ऑथराइज्ड शेयर्स से होता है। यह अधिकृत शेयर्स हर प्रकार के इन्वेस्टर्स, प्रमोटर्स, ऑफिसर, एंप्लॉयीज के पास अवेलेबल होते हैं। यह भी जान लीजिए कि इसमें वो treasury shares शामिल नहीं किए गए हैं जिन्हें कंपनी ने buyback किया होता है।
भारत की टॉप 10 हाई मार्केट कैप कंपनियां
Company Name | Market cap (In CR.) |
Reliance industries ltd | 13,28,134 |
Tata consultancy Services ltd | 11,70,750 |
HDFC Bank ltd | 8,19,612 |
Infosys ltd | 5,90,187 |
Hindustan Unilever | 5,63,685 |
ICICI Bank ltd | 4,11,087 |
Kotak Mahindra Bank ltd | 3,57,632 |
State Bank of India | 3,30,791 |
Bharti Airtel ltd | 2,86,025 |
ITC ltd | 2,70,856 |
मार्केट कैप कितनी तरह के होते हैं?
Market capitalization को किसी भी कंपनी का comparison करने के लिए तीन भागों में बांटा गया है। आइए आपको नीचे टेबल की हेल्प से समझाते हैं –
Company | Market cap |
Large cap | 20,000 करोड़ रुपए से अधिक |
Mid cap | 5,000 करोड़ रुपए से लेकर 20000 करोड़ रुपए तक |
Small cap | 5000 करोड़ रुपए से कम |
Types Of Market Cap in Hindi
1, Large cap (लार्ज कैप)
आपको बता दें कि लार्ज कैप कंपनियों के अंतर्गत वो सभी कंपनियां शामिल की जाती हैं जिनका टोटल मार्केट कैपिटलाइजेशन 20,000 करोड़ों रुपए से ज्यादा होता है। इनको आमतौर पर Blue chip stocks कहते हैं जोकि पिछले एक या फिर दो दशक से शेयर मार्केट में बहुत ही ज्यादा अच्छा परफॉर्म करके इन्वेस्टर्स को लगातार रिटर्न देती हैं।
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इनकी सबसे बड़ी खासियत यह होती है कि मंदी के टाइम में भी यह कंपनियां स्टेबल रहती हैं और खुद को प्रॉफिट में बनाए रखती हैं। वर्तमान में देखा जाए तो 180 से भी ज्यादा कंपनियों को इंडियन शेयर मार्केट में large market cap कंपनी के तौर पर लिस्ट में शामिल किया गया है। जैसे कि nifty 50 companies में सभी कंपनियों लार्जकैप में ही आती हैं।
2, मिड कैप (Mid Cap)
मिडकैप में आने वाली कंपनियों का मार्केट कैप 5,000 करोड़ रुपए से लेकर 20,000 करोड़ रुपए तक के बीच में होता है। अगर देखा जाए तो large cap के कंपैरिजन में इन कंपनियों में ज्यादा volatility होने की वजह से इन्वेस्टमेंट करना थोड़ा सा रिस्की होता है। लेकिन अगर इसके दूसरे पहलू को देखा जाए तो इन कंपनियों को near leader तौर पर माना जाता है और future potential देखते ही long run में बहुत ऊंची ग्रोथ और एक लार्ज कैप कंपनी बनने के मौके भी ज्यादा होते हैं। उदाहरण के तौर पर LIC housing Finance और Castrol India जैसी कंपनियां इसी में शामिल हैं।
3, Small cap (स्मॉल कैप)
जानकारी के लिए बता दें कि स्टॉक मार्केट में जितनी भी टोटल लिस्टेड कंपनियां हैं उनमें से 80% से लेकर 90% तक small cap companies ही हैं। इन स्मॉल कैप कंपनीज की मार्केट कैप 5,000 करोड़ रुपए से कम होती है। अधिकतर retail investor इसमें इन्वेस्ट इसलिए करते हैं क्योंकि ये कंपनीज साइज में छोटी होती हैं जिसकी वजह से इनकी ग्रोथ पॉसिबिलिटी काफी हाई होती है।
पर सच्चाई यह है कि छोटे market cap के कारण इसमें volatility और रिस्क दोनों ही ज्यादा होते हैं। इस वजह से नेगेटिव मार्केट में यह कंपनियां अपने आप को स्टेबल रखने में असमर्थ होती है और इसके कारण डाउन चली जाती हैं।
मार्केट कैपिटलाईजेशन क्यों महत्वपूर्ण है?
बहुत से लोगों को पता नहीं होता कि मार्केट केपीटलाइजेशन क्यों इंपॉर्टेंट होता है। तो मार्केट कैप किसी भी कंपनी की जो एक्चुअल साइज होती है उसको दर्शाता है जिससे कि इन्वेस्टर्स दो कंपनियों की तुलना करके risk taking ability के बारे में पता आसानी से लगा सकते हैं। इस तरह से फिर वह सही इन्वेस्टमेंट डिसीजन लेने में सक्षम हो पाते हैं। साथ ही बताते चलें कि मार्केट कैप का कंपनी की ग्रोथ , फ्यूचर पॉसिबिलिटी और रिटर्न से डायरेक्ट कनेक्शन भी होता है। कहने का मतलब यह है कि जितना ज्यादा मार्केट कैप उतनी ही ज्यादा बेहतर ग्रोथ की पॉसिबिलिटी होती है।
वैसे ज्यादातर cases में यह भी देखा गया है कि लार्ज कैप वाली जो कंपनियां होती हैं वह कम रिस्क के साथ इन्वेस्टर को एक स्टेबल रिटर्न प्रदान करती हैं। इसके विपरीत जो स्मॉल कैप कंपनियों होती हैं उनमें हाई रिस्क होता है लेकिन रिटर्न के बारे में कोई भी अंदाजा नहीं लगाया जा सकता।
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